आजादी के बाद ऐसा समय था जब भारत में खाद्यान्न की कमी थी। साठ के दशक में भारत लगभग एक करोड़ टन प्रतिवर्ष अनाज का आयात करता था। हमारे पेट खाली थे लेकिन धरती का पेट भरा हुआ था। 60 70 के दशक में हरित क्रांति आई जिसमें धान व गेहूं की बोनी किस्मों का प्रयोग किया गया। इन किस्मों की पैदावार देसी किस्मों से अधिक थी। इन किस्मों के पूर्ण उत्पादन के लिए अधिक सिंचाई व ज्यादा पोषक तत्वों का प्रयोग करना पड़ता था।
बोनी किस्मों के आने से रासायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग होने लगा जमीन की उपजाऊ शक्ति घटती चली गई। इसके साथ-साथ बीमारी व कीटों का आक्रमण बढ़ने लगा जिसकी वजह से जहरीली रासायनिक दवाइयों का अत्यधिक इस्तेमाल होने लगा। भूमि पानी और वातावरण प्रदूषित होने लगे।
अधिक रासायनिक खाद वह जहरीली दवाइयों के कारण भूमि में विद्यमान सूक्ष्म जीव केंचुए इत्यादि की गतिविधि वह क्रियाशीलता कम होती चली गई जिसका दुष्प्रभाव यह हुआ की भूमिका भौतिक रासायनिक और जैविक संतुलन बिगड़ गया। भरपूर पैदावार होने से हमारा पेट तो भर गया लेकिन धरती का पेट खाली होता चला गया।
रासायनिक खेती और ऑरगेनिक खेती में मृत और जीवित का अंतर है। रासायनिक खेती में रसायनों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से जमीन की उर्वरक शक्ति खत्म हो जाती है। भूजल स्तर नीचे गिर जाता है। फसलचक्र बदल जाता है और इस कारण किसान का रोजगार खत्म हो जाता है। ऐसी फसलें स्वास्थ्यवर्धक नहीं होती, इनसे शरीर को ताकत नहीं मिलती, कई बीमारियां होती हैं।
भारतीय कृषि विशेषकर उत्तर पश्चिम में भारत में जहां आवश्यकता से अधिक रासायनिक खाद व दवाओं का प्रयोग होता है वहां बाढ़ व सूखे से होने वाले नुकसान का प्रभाव अधिक हो सकता है क्योंकि इन क्षेत्रों की जमीने लगातार प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन का शिकार हो रही हैं।
थोड़ी सी अधिक वर्षा होने के साथ ही बाढ़ के हालात बन जाते हैं और सूखे की स्थिति में ट्यूबवेल पानी छोड़ने लगते हैं। स्पष्ट है कि हम अत्यधिक भयावह स्थिति की तरफ बढ़ रहे हैं क्योंकि यही वह क्षेत्र हैं जो पूरे देश की खाद्य सुरक्षा में अहम योगदान देते हैं अतः इस क्षेत्र में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना देश और किसानों के हित के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण है।
वरदान बन गई जैविक ताकत
दूसरी तरफ ऑरगेनिक खेती किसान और जमीन के लिए वरदान है। कम लागत होने के बावजूद धीरे-धीरे भूमि की उर्वरक शक्ति बढ़ती है, भूजल स्तर बढ़ता है और देसी बीजों को नया जीवन मिलता है। यही नहीं फसलचक्र नियमित होता है और किसान को रोजगार मिलता है। जैविक उत्पाद उपभोक्ता के लिए स्वास्थ्यवर्धक है
सेहत के लिए वरदान
बतौर ग्राहक ऑगरेनिक अनाज आपके स्वास्थ्य की दृष्टि से भी काफी फायदेमंद है। अच्छा स्वास्थ्य पाने के लिए अब लोग मोटे अनाज की ओर आकर्षित हुए हैं। इसमें फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है और इससे चयापचय की क्रिया तेज होती है। ऑगरेनिक अनाज की शुद्धता और स्वाद का कोई जो़ड नहीं है और यह अनाज पेट के रोगों के लिए खासा कारगर साबित हुआ है। वैसे ही मधुमेह के रोगियों के लिए भी मोटा अनाज फायदेमंद है।
अनाज में दम वैज्ञानिक ये भी स्वीकार करते हैं कि उच्च क्वालिटी का अन्न केवल ऑरगेनिक खेती के जरिए ही प्राप्त किया जा सकता है। यही नहीं अगर जमीन को भविष्य के लिए बचाकर रखना है तो ऑरगेनिक खेती ही एकमात्र विकल्प है।
प्राकृतिक खेती का पहला सिद्धांत यह है कि पौधों का नहीं अपितु जमीन का स्वास्थ्य मजबूत करो जमीन के स्वस्थ होते ही पौधा स्वयं ही स्वस्थ हो जाता है। यदि जमीन का स्वास्थ्य मजबूत है तो पौधा मौसम एवं वायुमंडल की विविधताओं के साथ लड़ने में सक्षम हो जाता है अतः भविष्य की विषम परिस्थितियों से यदि भारतीय कृषि को बचाकर आगे ले जाना है तो हमें प्राकृतिक खेती को अपनाना होगा.